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Wednesday 4 August 2021

चिडिया









                         
     मुडेर पर रोज जो चहचहाती थी,

    वो चिडिया अब नजर नही आती।

   नन्हे नन्हे पंखो से फडफडाती

   रोज छत पर जो चली आती थी

   वो   चिडिया अब नजर नही आती।

   दादी  के  किसे कहानियों मे

   बच्चो को जो बहलाती थी

   वो चिडिया अब नजर आती।

   मासूम सी दिखने वाली खुशी,

   आखों से दिल मे उतर जाती थी,

   वो  चिडिया अब नजर नही आती।

   भोर के शोर मे खो गई जो,

   वो चहचहाहट सुनाई नहीं देती।

  वो  चिडिया अब नजर नहीं आती।

Tuesday 6 July 2021

बाबू जी की हर बात


लफ्जों मे छुपी लम्हों की कहानी जैसी
यह किताब पुरानी लगती है
वक्त की स्याही से लिखी गीता जैसी 
बाबू जी की हर बात रुहानी लगती है।
धूल की धुंध से सन जैसी
मौन गुमसुम सी इबादत लगती है
पन्नो पर लिखी तजुर्बे की इबारत जैसी
बाबू जी की हर सांस आईना सा लगती है
कुंदन, सोने को करती आग जैसी
पन्ना पन्ना फैसलों की दावत लगती है
 जिंदगी मील का पत्थर हो जैसी
बाबू जी की हर चाह राह दिखाती लगती है
पन्नो पर पडी लकीरें जैसी
गुजारिश सी करती लगती है
अदीब गुफतुगु से सजी जैसी
बाबू जी की नजर जियारत सी लगती है।
Sandeep khosla

अदीब -विद्वान